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101 राष्ट्र- गीत

सुनील जोगी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6954
आईएसबीएन :978-81-288-1212

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101 राष्ट्र-गीत

101 Rashtra Geet - A Hindi Book - by Sunil Jogi

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

इस गीत-संकलन में राष्ट्र-देवता के चरणों में समर्पित एक सौ एक विविधवर्णी पुष्प हैं, जिनमें अपने देश की पवित्र माटी की सोंधी सुगन्ध समाहित है। पुस्तक में सम्मिलित रचनाकारों ने विभिन्न दृष्टियों से भारतमाता के असीमित गुणों का भावपूर्ण गान किया है। हमें विश्वास है कि आप यह संकलन पढ़कर देश-प्रेम में सराबोर हो जाएंगे और अपनी ‘पृथ्वी के स्वर्ग’ भारतवर्ष की विशेषताएं जानकर आपको अपने भारतीय होने पर गर्व की अनुभूति होगी।
डॉ. सुनील जोगी देश के चर्चित व लाड़ले हास्य-व्यंग्य कवि हैं। उन्होंने लगभग 75 पुस्तकों का प्रणयन किया है। विभिन्न राष्ट्रीय पत्रों में स्तंभ लेखन करने के साथ-साथ उन्होंने अनेक समाचार चैनलों पर भी अपनी अनूठी प्रस्तुतियां दी हैं। उन्होंने भारत के अतिरिक्त ग्रेट-ब्रिटेन, फ्रांस, नार्वे, दुबई, मस्कट, सूरीनाम जैसे देशों में कई बार 2500 से अधिक कवि-सम्मेलनों में काव्य-पाठ और संचालन किया है।
आज देश की नई पीढ़ी के कवियों में उन्हें सबसे ऊर्जावान रचनाकार माना जाता है।

भूमिका


डॉ. सुनील जोगी की काव्य-प्रतिभा और उसका सहज संप्रेषण मैं हिन्दी के अनेक काव्य-मंचों पर देख चुका हूँ। वे जिस विषय को अपने शब्द देते हैं, वह सामान्य श्रोता के लिए भी बोधगम्य हो जाता है। इतनी कम उम्र में उनके द्वारा रचित और संपादित 70 पुस्तकें अपने-आपमें हिन्दी जगत् में एक कीर्तिमान की तरह हैं, काव्य ही नहीं, संगीत और कला के क्षेत्र में भी उनकी संस्कारवान रुचियां उनके साहित्य को नया आयाम देनेवाली निधि हैं।

प्रस्तुत कविता-संग्रह हिन्दी के एक सौ एक राष्ट्रीय गीतों का संकलन है, जिनके चयन में डॉ. जोगी की राष्ट्रीय अस्मिता के प्रति एक गहरी दृष्टि का परिचय मिलता है। इन गीतों को उपलब्ध कराकर उन्होंने देश के तमाम-तमाम लोगों की मनोकामना पूरी की है। लोग इन गीतों को पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें वे सहज उपलब्ध नहीं होते। डॉ. जोगी इस संकलन के लिए साधुवाद के पात्र हैं। इन गीतों को पढ़ते हुए राष्ट्रीय उत्थान का जो उफान रक्त में संचारित होता है, वह राष्ट-सेवा के लिए एक नया माहौल बनाने में सहायक होगा, ऐसा मेरा विश्वास है। इस गरिमावान कार्य के लिए मैं अपने इस युवा रचनाकार को अनंत शुभकामनाएं देना चाहता हूँ। ये गीत हिन्दी जगत् में आदर के साथ पढ़े और याद किए जाएंगे। ये स्वर हमारे राष्ट्र के उन्नयन की मानसिकता तैयार करें, ऐसी मेरी चाहत है।

-पद्मश्री कन्हैयालाल नन्दन
प्रख्यात कवि एवं पत्रकार

राष्ट्रगान

रवीन्द्रनाथ टैगोर


जन गण मन अधिनायक जय हे,
भारत-भाग्य विधाता।
पंजाब, सिंधु, गुजरात, मराठा,
द्राविड़, उत्कल, बंग।
विन्ध्य, हिमाचल, यमुना, गंगा,
उच्छल जलधि तरंग।
तव शुभ नामे जागे,
तव शुभ आशिष मांगे।
गाये तव जय-गाथा,
जन गण मंगलदायक जय हे,
भारत-भाग्य विधाता।
जय हे ! जय हे ! जय हे !
जय, जय, जय, जय हे !


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